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जिदगीं में देखे, अनदेखे, जिये और भोगे पलों को इस उपन्यास में लाने की कोशिश में इतना लिख जाऊँगा, कभी सोचा भी नही था। सभी पात्र मेरे भीतर के है, मेरे ह्रदय में हलचल मचाने वाले ये पात्र जब मुखरित हुये तो एक मोटी किताब बन गयी। इस उपन्यास में ग्रामीण आबो-हवा में जन्मी, पली-बढ़ी, अल्प शिक्षित लड़की 'मौली' और शहरी वातावरण में पली-बढ़ी उसकी जुड़वां बहन डॉक्टर शालिनी के मध्य अभूतपूर्व प्यार और अद्भुत पराक्रम की दास्तान है, जिन्हें विषम से विषम परिस्थितियों में भी पराजय स्वीकार नहीं है। उनके अदम्य साहस और शौर्य को, मैं 'लेखक' सलाम करता हूँ।
मौली मुझसे इतना लिखवा लेगी, कभी सोचा भी नहीं था। इतना लिखने के बावजूद भी लगता है, बहुत कुछ छूट गया है। शायद पूर्णता किसी भी कार्य में किसी को कभी नहीं मिलती है। जिसने इस सहज सत्य को स्वीकार कर लिया है, वह ताजिंदगी पूर्णता के लिए यायावरी करता है। मैंने इस सत्य को सहजता से स्वीकार किया हूँ। लम्बी औपन्यासिक यात्रा के दौरान कई विचित्र प्रश्न मुझे मिलें हैं, जिनके उत्तर उपन्यास में देने की कोशिश मैंने की है। जिनमें प्रमुख हैं---
(एक) उस अनसुने गीत का रहस्य, जो सिर्फ डा.शालिनी को रात की नीरवता में सुनाई देता है, अन्य किसी को नहीं? वह गायक कौन है, जो रात के सन्नाटे की छाती अपने करुण, कातर सोज़ भरी आवाज़ से चीर देता है? गीतों के बोल शालिनी के कानो में पड़ते ही रात की वीरानगी में भी उसे अपनी ओर खींच लेते हैं और वह उन अज्ञात सुरों की दिशा में मंत्रमुग्ध खिंची चली जाती है।
(दो) दसवीं जमात तक पढ़ी मौली को हाई कोर्ट मर्डर जैसे केस की पैरवी की अनुमति कैसे प्रदान करता है?
(तीन) डॉक्टर शालिनी और मौली वास्तव में कौन हैं? दोनों में परस्पर क्या सम्बन्ध है?
(चार) राजा राधारमण प्रताप सिंह की मौत के बाद 'देसी क्लब' और 'मेगा हॉस्पिटल' का नवीन स्वरूप क्या बनता है? इलाहाबाद की सियायत और मुल्क की सियासत में राजा राधारमण प्रताप सिंह की मौत के बाद क्या तब्दीलियां आती हैं?
(पांच) सुलोचना की रूह क्या राजा साहब की रूह से मिलकर मोक्ष पा लेती है, या यूँ ही बेटियों की मदद में परछाई की तरह साथ लगी रहती है?
मेरा हर पाठक समीक्षक है, ये मेरी निजी समझ है, अतएव सभी पाठकों के विचारों का सदैव सम्मान और स्वागत रहेगा। इस पुस्तक की भाषा शैली देवनागिरी हिंदी के साथ-साथ उस समाज में प्रयोग में आने वाली बोली, तत्सम, तद्भव, देशज आदि शब्दों के साथ-साथ आंचलिक शब्दों को लेकर कथा को विशिष्टता प्रदान करते हुए चरित्रों और घटनाओं के साथ प्रवाहित होती है। पाठक शब्दों को केवल मानक हिंदी के स्तर पर न परखते हुए पुस्तक का आनंद लें।
सादर
रामानुज ‘अनुज’
Fiction Book Features | |
Author | : Ramanuj ‘Anuj’ |
Fiction book Type | : Literature |
Key Feature | |
Brand | : Other Manufacturers |
Books Specification | |
Binding | : Paper Back |
Language | : Hindi |
Number of Pages | : 158 |
More Details |
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Maximum Retail Price (inclusive of all taxes) | Rs.220 |
Common or Generic Name | - |
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